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यमदण्ड कोतवाल की कथा

नासिक नगर में राजा कनकरथ रहते थे । वे प्रजा का पालन करने में सदा सावधान रहते थे । उस नगर के थानेदार का नाम यमदण्ड था । यमदण्ड की माता का नाम वसुन्धरा था । वह छोटी ही उम्र में विधवा हो गयी थी और व्यभिचारिणी भी अधिक थी ।

एक दिन रात होने पर यमदण्ड तो शहर की चैकसी करने को चला गया था । वसुन्धरा ने यमदण्ड की स्त्री से कुछ गहने मॅंगाये उन्हें लेकर वह अपने यार को देने के लिये उसके बताये हुये ठिकाने पर जा रही थी कि यमदण्ड ने उसे देखा । यमदण्ड ने सोचा कि यह कोई व्यभिचारिणी स्त्री है, जो अपने यार के पास जा रही है । इसलिये वह भी वसुन्धरा के पीछे-पीछे चला । जब वसुन्धरा अपने यार के बताये हुये ठिकाने पर पहुॅंची तब यमदण्ड उसके पास ही पहुंॅचा । अंधेरे में किसी ने किसी को नहीं पहचाना । वसुन्धरा ने तो यह सोचा कि मेरा यार आ गया है और यमदण्ड ने सोचा कि कोई व्यभिचारिणी स्त्री है । इसलिये यमदण्ड ने वसुन्धरा के साथ पाप किया और उसके दिये हुये गहने घर पर लेता आया तथा अपनी स्त्री को दे दिये । जब यमदण्ड की स्त्री ने अपने गहने अपने ही पति के द्वारा वापस पाये तो उसे बड़ा अचरज हुआ । वह पति से इसका कारण पूंॅछने लगी कि ये गहने जो मैनें सासु जी को दिये थे , आपके हाथ में कैसे पहुॅंचे ? यमदण्ड ने अपनी स्त्री को तो यों ही बातों में टाल दिया, परन्तु उस पापी को अपनी माता ही के साथ कुकर्म करने का चस्का लग गया और यह भेद छिपाये रख कर उसके साथ कामसेवन करने लगा । ठीक है जिस मनुष्य की आंखे विषयवासना से अन्धी हो जाती हैं उसे भला बुरा कुछ नहीं सूझता ।

यमदण्ड की स्त्री को उसी दिन सन्देह हो गया था, परन्तु कई दिन बाद उसे पक्का पता लगा , तब उसे बड़ा दुःख हुआ । जब स्त्रियों के द्वारा राजा की मालिन को यह हाल मालूम हुआ , तो मालिन ने रानी के पास जाकर चर्चा की और रानी ने महाराज कनकरथ से यह समाचार कह दिया ।

माता के साथ व्यभिचार करने की वार्ता सुन कर राजा को एकाएक भरोसा नहीं हुआ । उन्होनें इसका पता लगाने के लिये अपने सिपाहियों से कहा । रात्रि को सिपाही इसकी खोज में निकले । सिपाहियों से यमदण्ड के कुकर्म को सच जानकर राजा ने यमदण्ड को कठिन दण्ड दिया, जिससे वह थोड़े ही दिनों में मर कर नरक गया ।

सारांश -पुरुष हो या स्त्री हो, किसी को भी यदि व्यभिचार का चस्का लग जाता है तो वे माता, पिता बहिन भाई आदि के साथ भी पाप करने से नहीं चूकते । जिससे उन्हें इस भव और परभव में बहुत दुःख उठाना पड़ता है । ऐसा जानकर ब्रह्मचर्य में दृढ़ रहना चाहिये तथा अपने पति और अपनी स्त्री में संतोष रखना चाहिये ।


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